दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल से अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रें हटाने की याचिका खारिज की
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दिल्ली हाई कोर्ट ने तिहाड़ जेल से अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रें हटाने की याचिका खारिज कीन्यायिक निर्णय: तिहाड़ जेल में कब्रों पर विवाद
24 सितंबर 2025, दोपहर 12:25 बजे IST: दिल्ली हाई कोर्ट ने बुधवार को एक जनहित याचिका (PIL) को खारिज कर दिया, जिसमें तिहाड़ जेल परिसर से आतंकवादी अपराधों में सजायाफ्ता और फांसी पर लटकाए गए मोहम्मद अफजल गुरु और मोहम्मद मकबूल भट्ट की कब्रों को हटाने की मांग की गई थी। कोर्ट ने कहा कि यह सरकार का संवेदनशील निर्णय था, जिसे 12 साल बाद दोबारा खोलना उचित नहीं है। यह फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा, कानून-व्यवस्था और धार्मिक संवेदनशीलता के बीच संतुलन को दर्शाता है। आइए इस मामले को विस्तार से समझें, जो देश में चर्चा का विषय बन गया है।
दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला: प्रमुख बिंदु 🔥
मामले की गहराई में: दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला
1. याचिका का आधार: कब्रें हटाने की मांग
विश्व वैदिक सनातन संघ द्वारा दायर जनहित याचिका में मांग की गई थी कि तिहाड़ जेल में अफजल गुरु और मकबूल भट्ट की कब्रों को हटाया जाए या उनके अवशेषों को गुप्त स्थान पर स्थानांतरित किया जाए। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि इन कब्रों की मौजूदगी जेल को "कट्टरपंथी तीर्थ स्थल" बना रही है, जो राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था के लिए खतरा है।
- याचिकाकर्ता: विश्व वैदिक सनातन संघ
- मांग: कब्रें हटाना या अवशेष स्थानांतरित करना
- आरोप: जेल में तीर्थ स्थल बनना
- प्रभाव: सुरक्षा और व्यवस्था पर खतरा
- जिज्ञासा: याचिका क्यों दायर की गई?
याचिका ने जेल प्रशासन की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए।
2. कोर्ट का तर्क: संवेदनशील निर्णय
मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय और न्यायमूर्ति तुषार राव गेदेला की खंडपीठ ने कहा कि कब्रों को बनाए रखने का निर्णय सरकार ने फांसी के समय लिया था, जिसमें कानून-व्यवस्था और संवेदनशीलता को ध्यान में रखा गया। कोर्ट ने माना कि 12 साल बाद इस फैसले को चुनौती देना उचित नहीं है, क्योंकि कोई विशेष कानून जेल में दफन पर रोक नहीं लगाता।
- खंडपीठ: मुख्य न्यायाधीश डी.के. उपाध्याय, न्यायमूर्ति गेदेला
- तर्क: सरकार का संवेदनशील निर्णय
- समय: 12 साल बाद चुनौती अनुचित
- कानून: दफन पर कोई स्पष्ट रोक नहीं
- जिज्ञासा: कोर्ट ने याचिका क्यों खारिज की?
कोर्ट ने सरकार के निर्णय को प्राथमिकता दी।
3. अफजल गुरु और मकबूल भट्ट: पृष्ठभूमि
मोहम्मद अफजल गुरु को 2001 के संसद हमले के लिए 2013 में फांसी दी गई थी, जबकि मकबूल भट्ट, जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (JKLF) के संस्थापक, को 1984 में फांसी हुई थी। दोनों को आतंकवादी गतिविधियों के लिए दोषी ठहराया गया था, और उनकी कब्रें तिहाड़ जेल में बनाई गई थीं।
- अफजल गुरु: संसद हमला, 2013 में फांसी
- मकबूल भट्ट: JKLF संस्थापक, 1984 में फांसी
- स्थान: तिहाड़ जेल
- मामला: आतंकवादी अपराध
- जिज्ञासा: उनकी सजा का इतिहास क्या है?
इन व्यक्तियों की सजा ने देश में व्यापक चर्चा छेड़ी थी।
4. कानूनी पहलू: दिल्ली जेल नियम
याचिका में दावा किया गया कि कब्रों की मौजूदगी दिल्ली जेल नियम, 2018 का उल्लंघन करती है, जो फांसी प्राप्त कैदियों के शवों को इस तरह निपटाने की बात कहता है कि उनकी महिमामंडन न हो। कोर्ट ने पूछा कि क्या कोई कानून जेल में कब्र बनाने पर रोक लगाता है, जिसका याचिकाकर्ता संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए।
- नियम: दिल्ली जेल नियम, 2018
- आरोप: महिमामंडन रोकने का उल्लंघन
- कोर्ट का सवाल: कब्र पर रोक का कानून?
- जवाब: याचिकाकर्ता असफल
- जिज्ञासा: जेल नियम क्या कहते हैं?
कानूनी स्पष्टता की कमी ने याचिका को कमजोर किया।
5. राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंता
याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि कब्रों की मौजूदगी से तिहाड़ जेल "कट्टरपंथी तीर्थ स्थल" बन रही है, जहां चरमपंथी तत्व आतंकवादियों की पूजा करने इकट्ठा होते हैं। उनका दावा था कि यह राष्ट्रीय सुरक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था को खतरे में डालता है, साथ ही धर्मनिरपेक्षता और कानून के शासन का उल्लंघन करता है।
- आरोप: कट्टरपंथी तीर्थ स्थल
- चिंता: राष्ट्रीय सुरक्षा
- प्रभाव: धर्मनिरपेक्षता पर सवाल
- आधार: याचिकाकर्ता का दावा
- जिज्ञासा: क्या यह वास्तव में खतरा है?
राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा याचिका का मुख्य आधार था।
6. कब्रों का तीर्थ स्थल बनना?
कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से पूछा कि क्या उनके पास ठोस सबूत हैं कि कब्रें तीर्थ स्थल बन रही हैं। कोर्ट ने कहा कि केवल समाचार रिपोर्टों के आधार पर PIL दायर नहीं की जा सकती। याचिकाकर्ताओं ने अनुरोध किया कि वे सबूत जुटाकर नई याचिका दायर करें, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया।
- कोर्ट का सवाल: तीर्थ स्थल के सबूत
- याचिकाकर्ता: सबूतों की कमी
- निर्णय: याचिका वापस, नई दायर करने की अनुमति
- प्रभाव: सबूतों की जरूरत
- जिज्ञासा: क्या सबूत मिल पाएंगे?
सबूतों की कमी ने याचिका को कमजोर किया।
7. सरकार का रुख: 12 साल पुराना फैसला
कोर्ट ने माना कि सरकार ने फांसी के समय अवशेषों को परिवार को सौंपने या जेल के बाहर दफनाने के बजाय जेल में कब्र बनाने का फैसला लिया था। यह निर्णय संवेदनशीलता और संभावित कानून-व्यवस्था की स्थिति को ध्यान में रखकर लिया गया था। क्या इस फैसले को अब बदला जा सकता है?
- निर्णय: जेल में दफन
- कारण: कानून-व्यवस्था
- समय: 1984 और 2013
- प्रभाव: स्थायी कब्रें
- जिज्ञासा: सरकार का फैसला क्यों लिया गया?
सरकार का पुराना फैसला कोर्ट के लिए निर्णायक रहा।
8. X पर प्रतिक्रियाएं
X पर लोगों ने इस फैसले पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं दी हैं। कुछ ने कोर्ट के फैसले का समर्थन किया, इसे संवेदनशीलता का सम्मान बताया, जबकि अन्य ने राष्ट्रीय सुरक्षा की चिंताओं पर जोर दिया। कई यूजर्स ने सवाल उठाया कि क्या कब्रें वाकई तीर्थ स्थल बन रही हैं। क्या आप इस बहस में शामिल होंगे?
- मंच: X
- प्रतिक्रियाएं: समर्थन और आलोचना
- चर्चा: सुरक्षा बनाम संवेदनशीलता
- प्रभाव: सार्वजनिक बहस
- जिज्ञासा: लोगों की राय क्या है?
X पर बहस इस मुद्दे की जटिलता को दर्शाती है।
9. अन्य उदाहरण: कसाब और मेमन
याचिका में अजमल कसाब और याकूब मेमन के उदाहरण दिए गए, जिनके शवों को गुप्त रूप से निपटाया गया ताकि उनकी कब्रें महिमामंडन का केंद्र न बनें। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया कि अफजल गुरु और मकबूल भट्ट के मामले में भी यही नीति अपनाई जानी चाहिए थी। क्या यह तुलना उचित है?
- उदाहरण: कसाब, मेमन
- नीति: गुप्त निपटान
- आरोप: नीति में विचलन
- प्रभाव: याचिका का आधार
- जिज्ञासा: नीति में अंतर क्यों?
अन्य मामलों की तुलना ने बहस को और गहरा किया।
10. क्या यह सही फैसला है?
कोर्ट का फैसला संवेदनशीलता और कानून-व्यवस्था को प्राथमिकता देता है, लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या कब्रों की मौजूदगी वाकई राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरे में डालती है। क्या कोर्ट को याचिकाकर्ताओं के दावों की गहराई से जांच करनी चाहिए थी, या यह फैसला संतुलित है?
- फैसला: याचिका खारिज
- तर्क: संवेदनशीलता और कानून
- चुनौती: सुरक्षा चिंताएं
- प्रभाव: बहस का मुद्दा
- जिज्ञासा: क्या यह फैसला सही है?
यह फैसला देश में लंबे समय तक चर्चा का विषय रहेगा।
फैसले का सारांश (टेबल)
यह तालिका दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले की प्रमुख जानकारी दर्शाती है।
विवरण | जानकारी |
---|---|
मामला | अफजल गुरु, मकबूल भट्ट की कब्रें |
कोर्ट | दिल्ली हाई कोर्ट |
फैसला | याचिका खारिज |
तर्क | संवेदनशील सरकारी निर्णय |
याचिकाकर्ता | विश्व वैदिक सनातन संघ |
आरोप | राष्ट्रीय सुरक्षा, महिमामंडन |
परिणाम | नई याचिका की अनुमति |
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- क्या आप दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले से सहमत हैं?
- क्या कब्रों की मौजूदगी राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है?
- इस मामले में सरकार को क्या कदम उठाने चाहिए?
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यह लेख सामान्य स्रोतों और विशेषज्ञ विश्लेषण पर आधारित है। सटीकता की गारंटी है, लेकिन हम किसी भी त्रुटि के लिए क्षमा चाहते हैं। प्रतिक्रिया का स्वागत है। अनधिकृत उपयोग निषिद्ध है।
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